॥ श्री हरि:॥
श्रीमद्भाग्दीता
सोलहवा अध्याय
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श्री भगवान बोले - भयक सर्वथा आभाव, अन्त:करणकी पूर्ण निर्मलता, तत्वज्ञानके लिये ध्यानयोगमें निरंतर दृढ़ स्थिति १ और सात्विक दान, इन्द्रियोंका दमन, भगवान् देवता और गुरुजनोंकी
पूजा तथा अग्निहोत्र आदि उत्तम कर्मोंका आचरण एवं वेद-शास्त्रोंका पठन -पाठन तथा भगवान् के नाम और गुणों का कीर्तन , स्वधर्मपालन के लिये कष्टसहन और सरीर तथा इन्द्रियों के सहित अन्त :कारनकी सरलता ॥ १ ॥
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