॥ श्री हरि:॥
श्रीमद्भाग्दीता
सप्तम: अध्याय
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श्री भगवान बोले- हे पार्थ ! अनन्यप्रेम से मुझमें आसक्तचित तथा अनन्यभावसे मेरे परायण होकर योगमें लगा हुआ तू जिस प्रकारसे सम्पूर्ण विभूति ,बल ,ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानेगा , उसको सुन॥ १ ॥। ... ... ..
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