जय भगवग्दीते जय भगवग्दीते ।
हरि -हिय कमल विहारिणि, सुन्दर सुपुनीते॥ जय
कर्म- सुकर्म प्रकाशिनि, कामासक्तिहरा ।
तत्वज्ञान-विकाशिनि, विद्या ब्रह्म परा॥ जय
निश्चल-भक्ति विधायिनी, निर्मल मलहारी ।
शरण- रहश्य -प्रदायिनी, सब विधि सुखकरी ॥ जय
राग-द्वेष विदारिणी, कारिणी मोद सदा।
भव-भय हारिणि, तारिणि परमानन्दप्रदा ॥ जय
आसुर- भाव विनाशिनी, नाशिनि तम रजनी।
दैवी सदगुणदायिनी, हरि - रसिका सजनी ॥ जय
समता-त्याग सिखावनि, हरि -मुखकी बनी ।
सकल शास्त्रकी स्वामिनी, श्रुतियों रानी ॥ जय
दया-सुधा बरसावनि मातु ! कृपा कीजे ।
हरिपद-प्रेम दान कर अपनो कर लीजै ॥ जय
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