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Wednesday, 1 March 2017

श्री राम-स्तुति- Sri Ram Stuti




। श्री हरि। 
श्री राम-स्तुति 
*

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं। 
नवकंज-लोचन, कंजमुख, कर-कंज, पद कंजारुणं॥ 

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज-सुंदरम। 
पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमी जनकसुता वरं ॥ 

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य वंश-निकन्दनं । 
रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद्र दशरथ-नंदनं॥ 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभुषणं। 
आजानुभुज शर-चाप-धर , संग्राम-जित खरदूषणं॥ 

इति वदित तुलसीदास  शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं। 
मम ह्रदय कंज-निवास कुरु, कामादि खाल-दाल-गंजनं॥ 

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सँवारो। 
करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावर॥ 

एहि भाँति  गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हर्षितअली । 
तुलसी भवानिहि पूजी पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली॥ 

सो० -जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि। 
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फडकन लगे ॥ 


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