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Wednesday, 1 March 2017

आरती कुन्ज बिहारी की- Arti Kunj bihari ki



 । श्री हरि:। 
आरती  कुन्ज बिहारी की
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आरती  कुन्ज बिहारी की, गिरधर कृष्ण मुरारी की । 
गले  में वैजन्ती माला, बजावें मुरली मधुर बाला,
श्रवण में कुंडल झल कला, नन्द के आनंद नन्दलाला,
राधिका संग रमण, बिहारी की ॥ श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

गगन सम अंग क्रांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाड़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक 
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्याम प्यारी की ॥ श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

कनकमय मोर मुकुट विलसै, देवता दर्शन को तरसैं । 
गगन सों सुमन बरसैं, बजे मुरचंग,मधुर मिरदंग,
ग्वालिनी संग, अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

जहाँ से प्रकट भई गंगा, कलुष  कलि हारिणी श्री गंगा,
स्मरण से होत मोह भंगा, बसी शिव शीश,जाट के बिच,
हरै अध् कीच, चरण छवि श्री बनवारी की॥ श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

चमकती उज्जवल तट रेणु, बजा रहे वृन्दावन वेणु,
चहुँ दिश गोपी ग्वाल धेनू , हंसत मृदु मन्द, चांदनी चंद्र,
कटत भव फन्द, टेर सुनो दीन भिखारी की॥ श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

आरती कुन्ज बिहारी की, श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की । श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की

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